- आजकल कामकाजी महिलाओं के लिए पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच बैलेंस बनाकर रखना काफी मुश्किलभरा काम होता है। ऐसे में डॉल्फिन पेरेंटिंग एक ऐसा तरीका है, जो व्यावहारिक भी है और बच्चों की देखभाल में मददगार भी है।
- दरअसल इस पेरेंटिंग में सख्ती नहीं होती है, लेकिन इसमें नियम, कायदे-कानून होते हैं। यह तरीका वर्किंग मांओं को आजादी देता है कि वह अपनी जरूरत और समय के मुताबिक बच्चों की परवरिश करें और बिना हर चीज पर नजर रखें हुए बच्चों को सही दिशा दे सकें।
- डॉल्फिन पेरेंटिंग में बच्चों को अपने छोटे-छोटे फैसले लेने के लिए आजादी देती है। ऐसा करने से बच्चे जिम्मेदार बनते हैं और धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनना सीखते हैं।
- कामकाजी मांएं समय की कमी के चलते बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड नहीं कर पाती हैं, लेकिन यह तरीका काफी राहतभरा होता है। इसमें आप कम समय में बच्चों के साथ अच्छी बातचीत और उनकी भावनाओं को समझने को अहमियत देती हैं।
- आज के डिजिटल दौर में बच्चों को पढ़ाई से ज्यादा मेंटल और इमोशनल हेल्थ को समझना जरूरी है। डॉल्फिन पेरेंटिंग के जरिए कामकाजी मांएं अपने बच्चों को खुश, समझदार और अच्छा इंसान बनाने की कोशिश करती हैं। वे बच्चों को नंबर लाने वाली मशीन नहीं बनाती है।
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